Sunday 17 May 2015

Political Interference in Bureaucracy – Causes, Consequences and Remedies



Political Interference in Bureaucracy – Causes, Consequences and Remedies
ब्यूरोक्रेसी किसी भी शासन व्यवस्था का अविछिन्न अंग है | मिश्र, जापान और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं में यह किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | भारत में इसके सशक्त प्रमाण चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ में मिलते हैं जहां उन्होने आमात्यगण को शासन के आधारभूत आठ स्तंभों में से एक माना | वर्तमान भारतीय ब्यूरोक्रेसी के बीज ब्रिटिश शासन व्यवस्था में विद्यमान हैं | हीगल ने इसको सर्वश्रेष्ठ मष्तिस्क बताते हुए इसके अधिकारों के स्रोत को शक्ति के अंतिम स्रोत दैवीय शक्ति से उधत माना था | भारतीय ब्यूरोक्रेसी को इस्पात का ढांचा कहा गया है | आज विडम्बना है की यह इस्पात का ढांचा स्वयं पर किये जाने वाले प्रहारों से स्वयं को बचाने की कवायद में रत है | शानदार इतिहास और प्रशंसनीय वर्तमान के बाजूद इसमें कमियाँ है, तो इसके कई कारण हैं किन्तु जो कारण सबसे जटिल और गंभीर है, वह है- राजनितिक हस्तक्षेप | हम इसी विषय के कारण, परिणामों और उपायों पर चर्चा करेंगे |
कारण
राजनैतिक हस्तक्षेप के कारणों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं |
1) व्यक्तिगत 2) संस्थागत
व्यतिगत स्तर के द्रष्टिकोण से देखें तो राजनैतिक हस्तक्षेप के कारणों में ब्यूरोक्रेट की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा आती है यह पोस्टिंग, स्थानान्तरण, वित्तीय लाभ किसी भी रूप में हो सकती है | ब्यूरोक्रेट का राजनीतिक लीक पर चलना भी इसका एक प्रमुख कारण है | व्यक्तिगत कारण राजनीतिज्ञ पर भी उतने ही लागू होते हैं जहां राजनेता नीति या पद का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं और चाहे अनचाहे सिविल सेवक इसका हिस्सा बन जाते हैं |
     अब संस्थागत कारणों पर विचार करते हैं | मंत्री नीति निर्धारण करते हैं | लोकतंत्र और सविंधान में उन्हें इसका अधिदेश प्राप्त है किन्तु सचिव को भी अपने अधिकार सविंधान प्रदत्त है | सचिव सवैंधानिक रूप से बाध्य है की वह मंत्री महोदय को किसी भी  नीतिगत मुद्दे पर बिना किसी भेदभाव के तटस्थ रूप से न्यायपूर्ण सलाह दे एक बार सचिव द्वारा सलाह दे दिए जाने पर मंत्री निर्णय लेने को स्वतन्त्र है तथा सचिव उस निर्णय के क्रियान्वयन हेतु बाध्य है जब तक की मंत्री का आचरण अनैतिक या गैर सवैधानिक न हो | यही वह बिंदु है जहां से गतिरोध प्रारम्भ होता है
परिणाम
राजनैतिक हस्तक्षेप के परिणाम काफी व्यापक होते हैं | इसके परिणाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही होते हैं | इस कार्यप्रणाली से नीतिगत निर्णयों में देरी होने लगती है | कई बार भ्रस्ताचार के मामलों में इमानदार सिविल सेवक भी लपेट लिए जाते हैं | जो की सिविल सेवकों की मनोदशा पर नकारात्मक परिणाम डालता है | धीरे धीरे सिविल सेवक ‘निर्णय न लेना ही सबसे अच्छा निर्णय है’ की नीति पर चलने लगता है |
       कई बार जब सिविल सेवक क़ानून और सिविल संहिता का पालन करते हुए निर्णय लेता है तथा जो सत्तारूढ़ सरकार के सामजिक या धार्मिक समीकरणों के सांगत नहीं होता है तो सरकार और संहिताओं का कवच जो सिविल सेवक की रक्षार्थ होता है वह हटा लिया जाता है | इससे भी सिविल सेवकों को एक नकारात्मक सन्देश जाता है |
              यदि इस प्रकार की समस्याएं आती है तो नीतियों के क्रियान्वयन में गंभीर समस्याएं आती हैं और वह व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित होता है जिसे उन नीतियों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है | इन प्रत्यक्ष परिणामों के इतर अप्रत्यक्ष परिणाम भी कम गंभीर नहीं होते हैं | यदि दो सवैधानिक आधिकारितापूर्ण शक्तियों में गतिरोध उत्पन्न होता है जो स्थान या शक्तियों का जो निर्वात पैदा होता है उसे सविधान से इतर शक्तियां भरने का प्रयास करती है | वह माफिया, अनितिक उद्योगपति आदि किसी भी रूप में हो सकते हैं
उपाय
इस समस्या के कई उपाय हैं , कई उपाय किये भी गए हैं | जैसे प्रशासनिक सुधार आयोग ने स्वीकारा की भारत में सुधारों की शुरुआत राजनीति से होनी चाहिए और चुनाव इसके मूल में है तो चुनाव सुधार ही इस दिशा में पहला कदम होगा | चुनाव सुधार स्वयं एक लम्बी प्रक्रिया है जो अद्यतन जारी है | अंततः चुनाव सुधार ही ईमानदार और निष्कलंक राजनेता का मार्ग प्रशस्त करते हैं | इसके अलावा राजनीतिग्य/मंत्रियों और अधिकारियों को अपने दायित्यों का निर्वहन पूरी इमानदारी से करना चाहिए | मुद्दों और नीतियों में भिन्नता गतिरोध का कारण नहीं बननी चाहिए | सिविल सेवक को भी तथाकथित लाभकारी पोस्टिंग, टफ पोस्टिंग जैसी अवधारणाओं को पूर्णतः त्याग देना चाहिए | सिविल सेवक को सिविल सेवा संहिता, 1964 में अपेक्षित आचरण करना चाहिए
        सिविल सेवक को दिए गए सवैधानिक अधिदेश के ही संगत आचरण करना चाहिए | नीतियाँ जब एक बार चुन ली जाती हैं तो उनके संगत सामाजिक और नीतिगत लक्ष्यों की प्राप्ति मंत्री के कार्यक्षेत्र में आती है, किन्तु इनकी प्राप्ति हेतु मध्यस्थ लक्ष्यों की प्राप्ति जो अंतत सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है वह अधिकारी के कार्यक्षेत्र में आती है | अतः सचिव/अधिकारी को पूर्णतः लगनपूर्वक उनकी प्राप्ति के प्रयास करने चाहिए |
       हालिया सिविल सेवा आचरण सम्बन्धी सुधार जैसे अधिकारी के ट्रान्सफर हेतु सिविल सेवा बोर्ड का गठन, यदि दो वर्ष पूर्व ट्रान्सफर किया जाता है तो स्पष्ट लिखित कारण बाताया जाना, राज्य सरकार से अपेक्षित है | इसके अलावा मौखिक निर्देशों की अनुपालना हेतु सिविल सेवक बाध्य नहीं होगा जब तक की वे लिखित रूप में न हो तो ऐसे कुछ सुधार किये गए हैं ताकि अधिकारी मंत्री को निष्पक्ष सलाह देने को प्रेरित हो तथा अपने दायित्वों का निर्वहन बिना किसी दबाव के करें | इस सम्बन्ध में हाल में भ्रस्ताचार निरोधक क़ानून, 1988 में किये गए संशोधन काफी महत्वपूर्ण है | जिसमे सर्वप्रमुख है रिटायर्ड सिविल सेवकों को भी सीधे कानूनी कार्यवाही से बचाने हेतु, कार्यवाही के पहले सरकार से मंजूरी अपेक्षित करने का प्रावधान है | यह काफी विवाद का विषय है किन्तु तर्कसंगत है जहां नीतियों में इतनी जटिलता और त्वरित निर्णयों की अपेक्षा हो वहाँ यह तय करना काफी मुश्किल होता है की भ्रस्ताचार या पद दुरुपयोग का मामला जानबूझकर किये गए भ्रस्ताचार की श्रेणी में आता है या नीतियों की जटिलता से उत्पन्न समस्या में | अतः निष्ठावान और ईमानदार सिविल सेवकों की रक्षार्थ कानूनों में यथोचित संशोधन अपेक्षित है किन्तु इसका ध्यान रखना आवश्यक है की इसका फायदा भ्रष्ट अधिकारी या भ्रष्ट नेताओं अधिकारियों का गठजोड़ न उठाए |
इस प्रकार जैसा की हमारे प्रधानमन्त्री जी ने कहा है “लोकतंत्र में राजनितिक मध्यस्थता अवश्यम्भावी है और यह होनी भी चाहिए, रचनात्मक मध्यस्थता ही स्वस्थ लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त करती है किन्तु राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए” अतः इन दोनों के मध्य की महीन रेखा का सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए और मंत्रियों और अधिकारियों को मिलकर कार्य करना चाहिए | इस सन्दर्भ में ख्यातनाम राजनितिक और सामजिक विज्ञानी रजनी कोठारी की पंक्तिया उधत करना प्रासंगिक होगा –“सिविल सेवाओं ने भारत में शानदार काम किया है, कई मुश्किल हालातों में इनका कार्य प्रशंसनीय है, अपनी कमियों के बावजूद इन्हें अक्षुण बनाने की आवश्यकता है

2 comments:

  1. अति सुंदर, सभी पक्षो को निष्पक्षता से एवम् कम शब्दों में कहने की अभूतपूर्व कला।

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