Monday 23 February 2015

अधिकार(सत्ता) बढ़ने के साथ साथ उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है



          अधिकार(सत्ता) बढ़ने के साथ साथ उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है
मनोविज्ञान में मनुष्य के सन्दर्भ में तीन आदिम भावनाओं की बात की गयी है जो की क्रमशः 'लिबिडो', 'दूसरों पर नियंत्रण रखने की इच्छा' और 'जीवित रहने की इच्छा के रूप में जानी जाती है | ये तीनों मनुष्य की मूल इच्छाएं होती हैं जो मनुष्य के अवचेतन में रहती है और अवसर आने पर कई रूपों में प्रकट होती हैं | यदि इस सन्दर्भ में दूसरी आदिम इच्छा –दूसरों पर नियंत्रण रखने की इच्छा की बात की जाए तो उसे सत्ता (अधिकार) के लिए रूढ़ माना जा सकता है | हर मनुष्य सत्ता प्राप्त करना चाहता है और इस माध्यम से वह अधिकाधिक शक्ति प्राप्त करना चाहता है ताकि वह दूसरों के जीवन पर नियंत्रण रख सके | यहाँ सत्ता के संकीर्ण नजरिये से बचते हुए हमें इसके आयामों का ध्यान रखना चाहिए | सत्ता कई प्रतीकों के माध्यम से आती है वह राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक कई रूपों में आती है|
                     अब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं की सत्ता और शक्ति की असीमितता के क्या परिणाम होते हैं | क्या सदैव ही ये नकारात्मक होते हैं जैसा की कहा भी गया है “शक्ति मनुष्य को भ्रष्ट बनाती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट” क्या सत्ता के साथ उत्तरदायित्व की भावना की अनिवार्यता संभव है और दोनों के परिणाम क्या होंगे |
                  पहले हम इसे समझने का प्रयास करते हैं की शक्ति की अनियिन्त्रिता के परिणाम क्या होंगे | हिंदी साहित्य के पुनर्जागरण के पुरोधा भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने प्रसिद्द नाटक ‘अंधेर नगरी-चौपट राजा’ में बहुत ही सशक्त तरीके से दिखाया है की किस प्रकार एक मूर्ख राजा अपनी शक्ति का प्रयोग करता है जिससे निर्दोष नागरिक मृत्युदंड के कगार पर पहुँच जाता हैकिन्तु अंततः मूर्ख राजा स्वयं ही उसका शिकार होता है और मारा जाता है | हमारा इतिहास ऐसे तानाशाहों से भरा पड़ा है जिन्होंने अपनी अपिरिमित शक्ति के प्रयोग से आम जनता के लिए कई परेशानियां खड़ी की है | तैमुर, नादिरशाह और हलाकू से लेकर पोलपोट, सद्दाम हुस्सेंन और गद्दाफी तक यह परंपरा अद्यतन कायम है |
अंतरराष्ट्रीय जगत के निर्विवाद नेता US द्वारा इराक पर एक तरफ़ा आक्रमण करना जबकि इसके लिए उसे UN का अनिवार्य अनुमोदन भी प्राप्त नहीं था कोण भूल सकता है | बाद में इसी आक्रमण के फलस्वरूप आई शक्ति शून्यता तथा वहाँ की संस्थागत शून्यता की स्थति ने वर्तमान ISIS संकट का उद्भव किया | पश्चिमी देशों के उपनिवेशवाद, हिटलर की अमानुषिकता US का वियतनाम युद्ध जैसे कई द्रष्टान्त इतिहास में भरे पड़े हैं |
यदि सत्ता को सामजिक सन्दर्भों में देखें तो किस प्रकार सदियों से पुरुष द्वारा महिला का दमन किया गया और महिलाओं को मूल अधिकारों से वंचित रखा गया | किस प्रकार पूँजीवाद ने श्रमिक वर्ग का शोषण किया और किस प्रकार सैकड़ों वर्षों तक ब्राह्मण वर्ग द्वारा दलित वर्ग का पद दलन किया गया इससे भला कोण परिचित नहीं होगा |
आर्थिक मोर्चों पर बड़ी कम्पनियां सदा ही छोटी कंपनियां को रोंदती आई हैं | ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्चता ने ही उसे पूँजीवाद के विद्रूप चेहरे में बदल दिया था | आधुनिक युग में माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ 1998 में लाया गया एंटी ट्रस्ट मामला तत्कालीन US इतिहास का सबसे बड़ा मामला था ये सब मुद्दे इन बड़ी कंपनियों को ऐसे बड़े वट वृक्ष के रूप में निरूपित करते हैं जिनके तले छोटी कंपनियों रुपी कोंपलें पल्लवित नहीं हो सकती हैं | इसी कारन भारत में कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) की अवधारणा आई |
            उपरोक्त उदहारण सत्ता की एक बहुत ही नकारात्मक छवि पेश करते हैं और अनायास ही सत्ता को हम उसके पाशविक रूप में देखने लगते हैं जैसा की परमाणु बम के प्रणेता ने हिरोशिमा नागासाकी के सन्दर्भ अपने नेतृत्व द्वारा इसके दुरुपयोग पर कुंठित होते गीता के ही शब्दों को प्रतिध्वनित करते हुए कहा था की “मैं ही शक्ति हूँ, मैं ही काल हूँ” तो क्या सत्ता का सिर्फ यही एक चेहरा है जो वीभत्स है या सत्ता का सदुपयोग संभव है जो की उत्तरदायित्व की बयार के साथ आये | आइये अब सत्ता के इस पक्ष पर बात करते हैं |
            सत्ता के सकारात्मक उपयोग से आशय है कुछ उत्तरदायित्व की भावना का समावेश किया जाना | यह स्वतः फूर्त भी हो सकता है और बाह्य आरोपित भी | इस सन्दर्भ में हमारे इतिहास के दो महान शासकों अशोक और अकबर का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा | अशोक ने सत्ता का निरंकुश प्रयोग करते हुए भयानक मारकाट मचाई किन्तु उसी सत्ता के दायित्व बोध ने अशोक को धर्म और शान्ति के सन्देश के प्रसार को प्रेरित किया और अशोक का स्थान राजा, शासक, महाराजा की अंतहीन श्रंखला में सबसे चमकीले नक्षत्र के रूप में प्रकाशमान है | सम्राट अकबर ने सत्ता और सहिष्णुता के मेल जोल से तथा संवाद की परंपरा कायम करके मुग़ल साम्राज्य को एक झटके से बाहरी आततायी के स्थान पर भारत की मिटटी से गहरे से जोड़ दिया |
                 इस सन्दर्भ में भारतीय संविधान निर्माताओं की सोच बड़ी दूरदर्शी थी | UK का संविधान मानव समाज की विकृतियों से शंकित हो सारी शक्ति संसद को सौंप देता है तो  US का संविधान कुछ अग्रगामी था और विधि निर्माताओं की शक्तियों से शंकित हो शक्ति स्रोत न्यायपालिका को सौंपता है किन्तु भारतीय संविधान निर्माताओं ने एक माध्यम मार्ग खोज निकाला है और शक्ति संतुलन कायम किया जो की एक मायने में उत्तरदायित्व की भावना का संतुलन था
                    सामजिक क्षेत्र में पुरुष वर्ग के पददलन से त्रस्त विश्व में केरल और मेघालय की मात्रवंशीय परम्पराएं भी द्रष्टिगत हैं | इन दोनों स्थानों पर क्रमशः नायर तथा खासी वंशों में मात्रवंशीय परम्पराएं हैं | कहना न होगा की किस प्रकार सर्वत्र नारी के शोषण ने इन स्थानों पर शक्ति के स्रोत नारी को एक उत्तरदायित्व का बोध कराया और इसी कारण यहाँ पर सत्ता का प्रयोग ज्यादा विवेकशील था | इसी कारण यहाँ के सामाजिक प्रतिमान भारत में अन्य स्थानों से अच्छे हैं |
        प. नेहरु में भी यह भावना थी तभी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे बड़े नेता होने के बावजूद डॉ आंबेडकर और डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया जबकि वे उनके राजनीतिक विरोधी थे | यह उत्तरदायित्व की भावना उनकी पुत्री इंदिरा गांधी में उतने गहरे शायद नहीं थी तो उसका परिणाम लोकतंत्र पर एक धब्बे के रूप में इमरजेंसी के रूप में सामने आया |
शक्ति के साथ उत्तरदायित्व के सबसे सशक्त उदाहरण हमारी संवैधानिक संस्थाएं हैं | भारत का निर्वाचन आयोग चुनाव के समय शक्ति का अंतिम स्रोत हो जाता है किन्तु इन्ही चुनावों के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र हर पांच वर्ष में सत्ता का परिवर्तन बड़े शांतिपूर्ण तरीके से करता है | CAG द्वारा की गयी निष्पक्ष लेखा परीक्षाएं सदा ही से सत्तारूढ़ शासक वर्ग के लिए चिंता का सबब रही हैं | कहना न होगा की किस प्रकार स्वायत्त RBI की नीतियों ने 1929 के बाद की सबसे बड़ी आर्थिक सुनामी से भारत को एक हद तक बचा लिया था तथा एकभी भारतीय बैंक दिवालिया नहीं हुआ था |
            इस प्रकार सत्ता और शक्ति के दो स्वरूप होते हैं और जितनी प्रबल सत्ता होती है उतनी ही प्रबल उत्तरदायित्व की भावना की दरकार होती है | एक और परमाणु बम विनाश का तांडव रचते हैं तो दूसरी और शान्तिपूर्ण प्रयोग विश्व की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में सक्रीय योगदान देते हैं | जिस प्रकार ज्यादा स्वतंत्रता की मांग के साथ एक बड़े उत्तरदायित्व की भावना स्वतः आती है जो की आग्रहपूर्वक यह दर्शाती है की स्वतन्त्र व स्वच्छंद रूप में जो निर्णय हमने लिए हैं उनके  परिणामों की जिम्मेदारी भी हमारी स्वयं की होती है | यह परिणाम की जिम्मेदारी स्वतः ही हमारी स्वतंत्रता को ऊश्च्रंख्ल होने से बचा लेती है | ठीक इसी प्रकार उतरदायित्व की भावना शक्ति के प्रयोग को ऊश्च्रंख्ल होने से बचाता है |

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