Monday 1 June 2015

Good Fences Make Good Neighbors



   Good Fences Make Good Neighbors

यदि मानव के संक्षिप्त इतिहासवृत पर द्रष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है की औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व तक देशों की सीमाएं परिवर्तित होती रहती थी | लोगों का ध्यान ह्रदय क्षेत्र की तरफ रहता था और सीमाओं का आपेक्षिक महत्त्व कम था, किन्तु धीरे धीरे औद्योगिक क्रान्ति और औपनिवेशीकरण का युग आया तो साम्राजवादी देशों को अपने उपनिवेशों की सुरक्षा हेतु सीमांकन आवश्यक लगा | बाद के काल में संसाधनों के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई तो सीमाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो गई | सीमाएं किन्ही दो देशों के मध्य सेतु का कार्य करती हैं तो क्या अच्छे संबंधों के मूल में सुरक्षित बाडबंदी की हुई सीमा आवश्यक है या यह स्वच्छंद वैचारिक और सांस्कृतिक प्रवाह में अवरोध का कार्य करती है | इन्हीं के आलोक में, देशों के मध्य परस्पर संबंधों की व्याख्या सीमाओं के सन्दर्भ में करने का प्रयास करते हैं |
                सर्वप्रथम सीमाएं किस प्रकार संबंधों में अवरोध का कार्य करती है, इस पर विचार करते हैं | सीमाएं भौतिक अवरोध का कार्य करती है किन्तु जब किसी देश में सामजिक तनाव बढ़ जाते हैं तो सीमाएं कितनी भी मजबूत हों वे अप्रतिम मानवीय दबाव को झेल नहीं पाती | इसी कारण प्रवसन की समस्या उत्पन्न होती है | सीमाएं इनके मानवीय पहलू को नेपथ्य में डाल देती हैं | चाहे वह म्यांमार से प्रवासित हो रहे रोहिंग्या मुस्लिमों की समस्या हो या  अफगान हजारा की या उत्तरी अफ्रीका से द. यूरोप की तरफ प्रवासन कर रहे लोगों की समस्या हो या ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में चर्चित रहे ‘बोट पीपुल’ की समस्या हो | यहाँ यह तथ्य रेखांकित करना होगा की जहां सीमाएं इस समस्या के समाधान में असफल रही हैं, वहीँ इससे सम्बंधित देशों के मध्य दुराव बढे हैं | वर्तमान में आसियान देशों के मध्य तनावपूर्ण संबंधों का सबसे प्रमुख कारण रोहिंग्या लोगों की समस्या से निपटने में इनकी अक्षमता रही है | आसियान देशों के संबंधों के स्वर्णिम अध्याय में यह यह काले धब्बे के समान है | इसी प्रकार की समस्या के कारण यूरोपीय यूनियन के देशों के मध्य कटुता की खबरें सुर्ख़ियों में रही हैं |
            सीमाएं सिर्फ भौतिक अवरोध होती हैं यह स्वच्छंद सांस्कृतिक और वैचारिक प्रवाह को बाधित करती है क्यूंकि अक्सर दो देशों के मध्य सीमा पार के लोगों के मध्य सांस्कृतिक सम्बन्ध काफी घनिष्ठ पाए जाते हैं | बंगाल-बांग्लादेश, उत्तर पूर्वी राज्य-म्यांमार, पकिस्तान-अफगानिस्तान और इन सबसे आगे US तथा पश्चिमी यूरोप के मध्य सांस्कृतिक संबंधों के ही कारण तो इनके संबंधों को अतलांतिक की गहराई भी विच्छेदित नहीं कर पाती |
            वर्तमान में जब सुचना क्रान्ति का दौर चल रहा है | सूचनाएं तीव्र गति से आ रही हैं | परिस्थतियाँ तेज़ी से बदल रही हैं | साइबर अपराध बढ़ रहे हैं | वैश्विकरण के दौर में जब व्यापार में WTO जैसी संस्थाओं की महत्ता बढ़ रही है तो सीमाओं की उपादेयता कम हो रही है | यूरोपीय यूनियन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जहां वे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी सीमाओं को  भुलाकर एक मजबूत पक्ष के रूप में अपनी बात रखते हैं धीर धीरे यही भावना अफ़्रीकी देशों में भी बलवती हो रही है |
      सीमाएं यदि सुरक्षा और अच्छे पडोसी की गारंटी होती तो क्रीमिया विवाद इतना प्रचंड कभी नहीं होता | इसके मूल में यही है की पूर्वी यूरोप के लोगों ने उस भौतिक अवरोध को दिल से कभी नहीं स्वीकार किया | यहाँ गांधीजी की पंक्तियाँ उधत करना समीचीन होगा | विभाजन की त्रासदी के सन्दर्भ में उन्होने कहा था – “यह सिर्फ भौतिक अवरोध है और लोग विभाजन को दिल से इसे कभी न स्वीकारें” | इसी बात को और आगे ले जाते हुए हमारे पूर्व प्रधान मंत्री ने भारत-पाक संबंधों की दिशा में महत्वपूर्ण बात कही – “आओ हम सीमाओं को ही महत्वहीन बना दें, ताकि कम से कम LOC पर तो लोगों का आवागमन स्वच्छंद हो सके” |
      किन्तु इतने मजबूत पक्षों के बावजूद सीमाओं की उपादेयता को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता | यह देशों को सुरक्षा का भाव तो देता ही है | इसी कारण पाक से लोगों के गैर कानूनी प्रवासन की खबरें नहीं सुनाई देती किन्तु बांग्लादेश के सन्दर्भ में तो यह एक बड़ा मुद्दा है इस समस्या का एक प्रमुख कारण यह भी है की भारत-बांग्लादेश सीमाबंदी का पूर्ण न होना और काफी जटिल भौगोलिक सरंचना का होना | भारत जैसे देश जो शंकित पड़ोसियों से घिरे हैं उनके लिए सीमाओं की महत्ता और बढ़ जाती है | वर्तमान में आतंकवाद के साए में सीमाओं की चौकसी और उचित सीमाबंदी एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषयवस्तु है | हाल में भारत-नेपाल सीमा पर दो भिन्न घटनाक्रमों में दो दुर्दांत आतंकवादियों के पकडे जाने से सीमा रुपी अवरोधों की उपादेयता और बढ़ गयी है |
            भारत चीन समस्या के मूल में सीमा की समस्या ही है क्यूंकि हम मेक मोहन रेखा पर इसकी ऐतिहासिकता की वजह से एकमत नहीं हो पा रहे हैं किन्तु यहाँ यह बात उल्लेखनीय है की चीन-म्यांमार ने अपने सीमा विवादों को मेक मोहन रेखा के ही आलोक में सुलझाया है तो यह बात भारत चीन विवाद के समाधान में मेक मोहन रेखा के महत्त्व को और इसके समाधान के मार्ग को प्रशस्त करती है |
      US तथा कनाडा के सीमा संबंधों को अक्सर एक श्रेष्ठ उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है किन्तु यहाँ मुख्य तथ्य यह है की दोनों देशों के बीच सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध हैं सामाजिक, सांस्कृतिक और विकास की समानता जैसे मुद्दे उनकी सीमाओं को सुरक्षित और स्वछंद बनाते हैं | इसके विपरीत US मेक्सिको सीमा तो US में गैर कानूनी तरीके से घुसने का मार्ग बन चुकी है | स्पष्ट है की सीमाओं की स्वछंदता में दोनों देशों की जिम्मेदारी बराबर होती है जिसमें अन्य शक्तियां भी कार्य करती हैं |
            वर्तमान में जब संसाधनों की होड़ मची हुई है | विभिन्न राष्ट्र अधिकाधिक संसाधनों पर नियंत्रण चाहते हैं तो सीमाओं की उपादेयता स्वतः ही बढ़ जाती है अन्यथा दोनों देशों के संबंधों में दुराव उत्पन्न होते हैं | दक्षिण चीन सागर की समस्या का मूल, संसाधनों के नियंत्रण को लेकर ही है | इसी कारण चीन की उस क्षेत्र के सभी पडोसी देशों से कटुता है | जापान और द. कोरिया के संबंधों में भी दुराव का कारण यही है | भारत पाक के बीच सर क्रीक का मुद्दा भी इसी कारण गरमाया रहता है | यदि सीमाओं का उचित सीमांकन होता तो ये समस्या कभी उत्पन्न नहीं होती | इन सब पक्षों के अलावा इस तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है की सुरक्षित सीमाओं के अभाव में अस्थिर देश अपने पडोसी देशों के लिए भी समस्या उत्पन्न करता है | एक अस्थिर पकिस्तान या अफगानिस्तान पूरे क्षेत्र के लिए एक समस्या बन सकता है | उ. कोरिया जैसे राष्ट्र जिन्हें अक्सर ‘ब्लैक होल’ स्टेट कहा जाता है, ऐसे देशों के साथ संबंधों में सुरक्षित सीमाएं काफिर महत्वपूर्ण होती हैं |
            इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं की सुरक्षित सीमाएं अच्छे पडोसी की गारंटी नहीं होती किन्तु इससे सुरक्षा संबंधी मुद्दों के सम्बन्ध में उनकी प्रमुखता कम नहीं हो जाती | वैसे हमारा अंतिम लक्ष्य सीमाओं को महत्वहीन बनाना ही होना चाहिए और सारी नीतियों और कूटनीतिक बातचीतों के मूल में यही रहना चाहिए | जैसा की भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा है –“भूगोल ने हमें पडोसी, इतिहास ने मित्र, अर्थशास्त्र ने भागीदार तथा आवश्यकता ने सहयोगी बनाया है | जिन्हें भगवान् ने ही इस प्रकार जोड़ा है उनको मनुष्य कैसे अलग कर पायेगा” |


2 comments:

  1. Antim pankti bahut hi badiya hai..aap background pura white kar de padne mai aur spastha najar aayegi.

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    1. शुक्रिया अज्ञात जी

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