Tuesday 27 January 2015

क्या हिंदी को राष्ट्री भाषा होना चाहिए



क्या हिंदी को राष्ट्री भाषा होना चाहिए 

US के न्रजातीय विज्ञानी प्रो.ब्रोक ने किसी भौगोलोक प्रदेश को सांस्कृतिक प्रदेश मानने के मानदंडों में आठ चरों को स्थान दिया है और आठ में से भी उन्होने तीन प्रमुख चरों की महत्ता को रेखांकित किया | वे थे – भाषा, धर्म, लोक संस्कृति | इस प्रकार भाषा किसी भी प्रदेश की संस्कृति का प्रमुख हिस्सा होती है भौगोलिक क्षेत्रीय प्रदेश से आगे जाकर यदि राष्ट्र की संकल्पनाओं पर विचार करें तो स्टालिन की पंक्तियाँ उद्धत करना प्रासंगिक होगा “ऐसे देश की कल्पना नहीं की जा सकती जिसकी एक मजबूत भाषा न हो” | भारत के सन्दर्भ में यह विचार समीचीन प्रतीत नहीं होता है तो भारत एक अपवाद है या यह कथन स्वयं में अतिशयोक्तिपूर्ण है|
                           दुनिया के ताकतवर देशों पर एक नज़र डालने पर स्टालिन की बात कुछ सही प्रतीत होती है जैसे US में अंग्रेजी, जर्मनी में जर्मन, फ्रांस में फ्रेंच, ब्राज़ील में पुर्तगाली, चीन में मंडरिन, किन्तु मानचित्र में ऐसे ऊदाहरनो की कमी नहीं है जो बहु भाषी हैं और मज़बूत भी स्विट्ज़रलैंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसका आकर भारत के सबसे बड़े राज्य से भी छोटा होते हुए भी वहाँ चार भाषाएँ बोली जाती है किन्तु यहाँ यह तथ्य रेखांकित करना ज़रूरी है स्विट्ज़रलैंड में भी वहाँ के संघीय ढाँचे का आधार भाषा ही है
                           इस प्रकार अन्तराष्ट्रीय जगत के कुछ उदाहरण किसी भाषा की महत्ता को इंगित करते हैं | अब हम भारत के सन्दर्भ में इसका अध्ययन करने का प्रयास करते हैं | भारत में 22 भाषाओं को संघीय सूची में स्थान दिया गया है इसके अलावा और भी कई बोलियाँ और भाषाएँ हैं कुछ जनजातीय भाषाएँ तो सिर्फ कुछ सैंकड़ो लोगों द्वारा ही बोली जाती है | इसके अलावा समय समय पर कुछ अन्य बोलियों और भाषाओं को भी संघीय सूची में स्थान दिए जाने के प्रयास, प्रभाव समूहों द्वारा किये जाते रहे हैं, इसका एक उदाहरण राजस्थानी भाषा है | लिपियों और भाषाओं की भारत में काफी विविधता है | स्वयं हिंदी की 18 प्रमुख बोलियाँ है जो की पूरे उत्तरी भारत में सम्प्रेषण का एक प्रमुख माध्यम है | इस सन्दर्भ में एक उक्ति काफी प्रचलित है जो दर्शाती है की भारत में कितनी भाषा की कितनी विविधताएं हैं – आठ कोस पर पानी, चार कोस पर वाणी | इस प्रकार भारत में काफी विविधता हैं जो स्टालिन के कथन को झुठलाती सी प्रतीत होता है
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                     किन्तु विविधता के इस मोती रुपी माला में हिंदी सबसे प्रमुख है, इसमे कोई संशय नहीं है | सबसे ज्यादा क्षेत्र में हिंदी बोली जाती है | भारत की 40% आबादी हिंदी बोलती है और 70% आबादी हिंदी बोलती है |...गाँधी जी जो स्वयं एक अहिन्दी प्रदेश से आते थे उन्होने स्वयं हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की वकालत की थी | उनके अलावा लोकमान्य तिलक सुभाष चन्द्र बोस और स्वामी दयान्द सरस्वती अभी विचारकों ने जो की स्वयं अहिन्दी प्रदेशों से आते थे, हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की संभावनाओं को रेखांकित किया है |  
                      हिंदी भारत की सबसे प्रमुख भाषा है, इसमे कोई संदेह नहीं है किन्तु अन्य प्रमुख भाषाएँ चाहे भौगोलिक रूप से कम क्षेत्र में बोली जाती हो किन्तु उनका प्रभाव व्यापक है | द्रविड़ भाषाएँ अपनी परम्पराओं में काफी सम्रद्ध हैं | 2000 वर्ष पूर्व तमिल में ही संगम साहित्य की रचना हुई थी | बांग्ला स्वयं में एक समृद्ध भाषा है जो भारत की सबसे मीठी भाषा के रूप में जानी जाती है | भारत के पडोसी देश बांग्लादेश के उदय का मूल कारण भी वहाँ की समृद्ध बांग्ला संस्कृति को प. पाकिस्तान द्वारा दबाने का प्रयास था |
                               भारत में राष्ट्रभाषा सम्बन्धी मुद्दा संविधान के निर्माण के समय से ही काफी मुखर होकर उभरकर आया है | इस पर संविधान सभा में काफी तीखी बहस हुई थी, तब इस मुद्दे का एक तात्कालिक समाधान निकलते हुए यह प्रावधान किया गया की 1965 तक कार्यालयों में संवाद का का माध्यम हिंदी और अंग्रेजी दोनों रहेगी उसके बाद हिंदी आधिकारिक रूप से संवाद का माध्यम होगी किन्तु इस बीच सम्बद्ध राज्य
हिंदी को प्रोत्साहित करने के प्रयास करेंगे | 1965 के बाद जब राष्ट्रपति महोदय द्वारा इस आशय की अधिसुचना जारी की गयी तो देश में धरने प्रदर्शनों का एक ऐसा सिलसिला शुरू हो गया जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया इस झंझावत का केंद्र था –तमिलनाडु | इस प्रकार भाषाई राष्ट्रवाद जैसे शब्द सुनाई देने लगे तो केंद्र सरकार ने भी हठधर्मिता छोड़ते हुए अधिसूचना निरस्त कर दी और हिंदी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया और केंद्र तथा राज्यों और राज्यों में आपस में संवाद के लिए एक नियमावली तैयार की जो की हिंदी की अनिवार्यता को समाप्त करती है | इस प्रकार वर्तमान में यदि एक अहिन्द राज्य और केंद्र के मध्य के मध्य संवाद किया जाता है तो वह अंग्रेजी में किया जाता है किन्तु यह सुनिश्चित किया जाता है की एक प्रतिलिप हिंदी की भी हो | इस प्रकार मुद्दे का एक तात्कालिक समाधान कर दिया गया | फिर भी इसका दूरगामी और व्यवहारिक हल नहीं किया गया | त्रिस्तरीय फार्मूला भी निकाला गया जो की अहिन्दी राज्यों में हिंदी को तृतीय भाषा के रूप में प्रोत्साहित करने हेतु निकाला गया  
   अब यदि भारत में आज़ादी के बाद के अलगाववादी आन्दोलनों पर द्रष्टिपात करें तो मोटे तौर पर तीन आन्दोलनों को रेखांकित कर सकते हैं
50 के दशक का नागा आन्दोलन, 80 के दशक का पंजाब तथा 90 के दशक का कश्मीर अलगाववादी आन्दोलन, और किसी भी आन्दोलन का आधार भाषा नहीं था | इस सन्दर्भ में तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषाई आन्दोलन अपने स्वरूप में काफी उग्र थे किन्तु वे अलगाववादी नहीं थे और वे कहीं न कहीं भारतीय संघ में अपनी अस्मिता तलाश रहे थे
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                                   इस समस्या का समाधान करने के इतर यदि इस समस्या को ही अप्रासंगिक बना दिया जाए तो वह सर्वोत्तम हल होगा | जैसा कि गौतम बुद्ध ने कहा भी है- “सर्वोत्तम न्याय वही होता है जिसमे किसी की हार नहीं होती है”| इस प्रकार अति केन्द्रीयता के स्थान पर, राष्ट्रभाषा जैसे वस्तुनिष्ठ विचार के स्थान पर भाषाई अंतर्संबंधों पर बल दिया जाना चाहिए | भारतीय संघ की मजबूती का आधार भी यही है की वे स्वयं की महत्ता को अक्षुण्ण रखते हुए एकनिष्ठ विचार को मजबूती प्रदान करें | हर संस्कृति और हर भाषा अपने में श्रेष्ठ है | जो अंग्रेजी कभी पूरे भारत में संवाद का माध्यम होती थी वह बेशक अभी भी सबसे बड़ा संवाद का माध्यम है किन्तु अब दक्षिण भारत में भी हिंदी लोकप्रिय होती जा रही है | फिल्में इसका सबसे सशक्त जरिया है |
                       इस प्रकार किसी एक भाषा को किसी भी रूप में थोपने के स्थान पर एक प्रगितिशील रूप में सभी भाषाओं का प्रचार प्रसार किया जाए तो हमारी मूल समस्या की एक भारतीय भाषा ही संवाद का माध्यम हो, इसका समाधान स्वयमेव हो जाएगा |

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